एब्स्ट्रैक्ट:कैथेलिक चर्च के सबसे वरिष्ठ कार्डिनल और इस सप्ताह वेटिकन में बाल उत्पीड़न सुधार पर आयोजित एक बड़े सम
कैथेलिक चर्च के सबसे वरिष्ठ कार्डिनल और इस सप्ताह वेटिकन में बाल उत्पीड़न सुधार पर आयोजित एक बड़े सम्मलेन के चार आयोजनकर्ताओं में से एक का मानना है कि वो अपने पास आए उत्पीड़न की शिकायतों को बेहतर तरीके से देख सकते थे.
मुंबई के आर्चबिशप ओस्वल्ड ग्रेशस ने बीबीसी की एक पड़ताल के बाद दावा किया कि उन्होंने बाल शोषण के एक मामले में जल्द कार्रवाई नहीं की और पुलिस को आरोपों की जानकारी नहीं दी थी.
पीड़ितों और उनका समर्थन करने वालों का आरोप है कि भारत के सबसे वरिष्ठ पादरियों में से एक और वेटिकन में यौन शोषण पर सम्मलेन कराने वाले प्रमुख आयोजनकर्ताओं में शामिल कार्डिनल ओस्वल्ड ग्रेशस ने उत्पीड़न की उन शिकायतों को संजीदगी से नहीं लिया, जो उनसे की गई थीं.
भारत के कैथेलिक ईसाइयों का कहना है कि पादरियों द्वारा यौन शोषण के बारे में कैथेलिक चर्च में डर और चुप्पी की संस्कृति रही है. जिन्होंने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है, वो कहते हैं कि यह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं थी.
हमें दो अलग-अलग मामले मिले, जिसमें दावा किया गया कि तुरंत कार्रवाई और पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के मामले में कार्डिनल विफल रहे हैं.
पहला मामला मुंबई का है, साल 2015 का
जिस शाम उनकी जिंदगी बदल गई, वो कुछ ख़ास नहीं थी. उनके बेटे ने चर्च की सभा से लौटने के बाद उनसे कहा कि पादरियों ने उसके साथ बलात्कार किया था.
उसकी मां ने बताया, “मैं समझ नहीं पा रही थी कि मुझे क्या करना चाहिए?” वो अभी भी नहीं जानतीं कि उन्हें क्या करना चाहिए, लेकिन इस घटना की वजह से उन्हें भारत के कैथेलिक चर्च से टकराव झेलना पड़ा.
वो जिस व्यक्ति के पास मदद के लिए पहुंची थी वह भारत के कैथेलिक चर्च के सबसे वरिष्ठ प्रतिनिधियों में से एक थे.
कथित बलात्कार की घटना के करीब 72 घंटे बाद परिवार को कुछ वक़्त के लिए कार्डिनल ओस्वल्ड ग्रेशस से मिलने का मौका मिला. कार्डिनल मुंबई के आर्चबिशप और तब वो कैथेलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया और फेडरेशन ऑफ एशियन बिशप कॉन्फ्रेंसेस के अध्यक्ष थे.
चर्च के भीतर लोग उन्हें अगला पोप मानते थे और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वेटिकन में यौन शोषण पर इस सप्ताह आयोजित होने वाले विश्व शिखर सम्मेलन के चार प्रमुख आयोजकों में से वो एक हैं.
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'न्याय की उम्मीद लेकर गई थी'
इस समय चर्च के भीतर यौन शोषण के मुद्दे को वेटिकन में हो रहे सम्मलेन में सबसे बड़ा संकट माना जा रहा है और कैथेलिक चर्चों की अखंडता इसके परिणाम पर निर्भर करती है.
बीते सालों में दुनियाभर के कैथेलिक चर्चों पर यौन शोषण के कई आरोप लगे हैं. ये आरोप उत्तर और दक्षिण अमरीका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में सुर्खियां भी बनीं लेकिन एशियाई देशों में इस समस्या के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
भारत जैसे देशों में शोषण को एक सामाजिक कलंक समझा जाता है, जिसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज करवाना खुद को बदनाम करने जैसा होता है.
इस देश के करीब 2.8 करोड़ की आबादी वाले ईसाई समुदाय में डर और मौन की संस्कृति के चलते समस्या की वास्तविकता को आंका नहीं जा सकता.
चार सदस्यीय आयोजन समिति में कार्डिनल ओसवल्ड ग्रेशस के सहयोगी और शिकागो के कार्डिनल ब्लेज़ कपिच ने वादा किया है कि रोम और दुनियाभर के प्रदेशों में बैठक के बाद कार्रवाई होगी ताकि बच्चों को इससे बचाया जा सके और पीड़ितों को न्याय मिल सके.
इस महत्वपूर्ण सम्मलेन के दौरान उन्हें दी गई इस ज़िम्मेदारी से भारत के कुछ लोग नाराज़ हैं. उनका कहना है कि बच्चों और महिलाओं को दुर्व्यवहार से बचाने का उनका पिछला रिकॉर्ड सवालों के घेरों में रहा है.
जो लोग उनके पास मदद के लिए पहुंचे थे, उनका कहना है कि उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी.
पीड़ित बच्चे की मां का कहना है, मैंने कार्डिनल को बताया कि पादरी ने मेरे बच्चे के साथ क्या किया है, मेरा बच्चा काफी दर्द में था. उन्होंने हमारे लिए प्रार्थना की और कहा कि उन्हें रोम जाना है."
उस समय मेरे दिल को चोट पहुंची. एक मां होने के नाते मैं उनके पास काफी उम्मीद लेकर पहुंची थी कि वो मेरे बेटे के बारे में सोचेंगे और मुझे न्याय मिलेगा लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास हमारे लिए वक़्त नहीं है. वो सिर्फ रोम जाने की चिंता कर रहे थे."
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भारतीय कानून का उल्लंघन
पीड़ित परिवार का कहना है कि उन्होंने मेडिकल मदद की मांग की थी पर उसे यह सुविधा मुहैया नहीं कराई गई.
कार्डिनल ने बीबीसी से कहा कि “यह सुन कर उन्हें तकलीफ हुई” और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि बच्चे को मेडिकल मदद की ज़रूरत थी और अगर उनसे पूछा जाता तो वो तुरंत इसकी पेशकश कर सकते थे.
कार्डिनल ने यह स्वीकार किया कि वो अधिकारियों को सतर्क किए बिना ही उस रात रोम के लिए रवाना हो गए थे.
कार्डिनल ग्रेशस ने पुलिस को इसकी जानकारी नहीं देकर भारत के पॉक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट 2012) का भी उल्लंघन किया है.
पॉक्सो एक्ट के मुताबिक़ अगर संस्थान या कंपनी का मुखिया अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में हुई इस तरह की घटना की रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाता है तो उसे एक साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है.
कार्डिनल ने हमें बताया कि अगले दिन उन्होंने बिशप को कॉल किया था, जिन्होंने उन्हें जानकारी दी थी कि परिवार खुद अपने स्तर पर मामला दर्ज करवाएगा.
क्या उन्हें इस बात की तकलीफ है कि उन्होंने पुलिस को इस बारे में नहीं जानकारी दी थी? इस सवाल पर कार्डिनल ने कहा, आप जानते हैं कि मैं ईमानदार हूं, मैं 100 प्रतिशत श्योर नहीं हूं... लेकिन मुझे उस पर चिंतन करना चाहिए. मैं निश्चित रूप से मानता हूं कि मुझे तुरंत पुलिस को इसमें शामिल करना चाहिए था."
उन्होंने कहा कि यह उनका कर्तव्य था कि आरोपों की सत्यता की जांच करें और जिन पर आरोप लगे हैं उनसे बात करें.
कार्डिनल से मुलाक़ात के बाद परिवार ने एक डॉक्टर के पास जाने का फ़ैसला किया. बच्चे की मां ने कहा, उसने मेरे बेटे की तरफ देखा और कहा कि उसे कुछ हो गया है. यह पुलिस केस है. या तो आप इसकी शिकायत दर्ज कराएं या मैं कराऊंगा. इसलिए हम उस रात पुलिस के पास गए."
पुलिस की मेडिकल जांच में यह बात भी सामने आई कि बच्चे के साथ यौन शोषण हुआ था.
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दूसरी शिकायतों में कैसा रहा रवैया
वर्तमान में एक पादरी ने नाम न छापने की शर्त पर हमसे कहा कि यह पहली बार नहीं है जब किसी पादरी की शिकायत कार्डिनल के संज्ञान में लाई गई हो.
पादरी ने हमसे कहा, इस (कथित) घटना से कुछ साल पहले मैं उनसे मिला था. उस पादरी (आरोपी पादरी) के बारे में कई अफवाहें फैली थीं और ये उन यौन शोषण की घटनाओं के बारे में थी जो हो रही थीं.लेकिन फिर भी वो आराम से एक जगह से दूसरी जगह जाते रहे. कार्डिनल ने मुझसे कहा था कि वो इन चीजों के बारे में प्रत्यक्ष रूप से नहीं जानते हैं."
कार्डिनल ने कहा कि उन्हें पूरी बातचीत अच्छी तरह याद नहीं है. उन्होंने कहा कि उन्हें वह व्यक्ति (आरोपी पादरी) किसी तरह से संदिग्ध नहीं लगा.
पड़ताल में हम यह भी पता लगाना चाहते थे कि क्या कार्डिनल ने दूसरी शिकायतों पर भी धीमी गति से कार्रवाई की थी.
हमें करीब एक दशक पुराने मामले का पता चला. उस घटना के कुछ साल पहले ही कार्डिनल मुंबई के आर्चबिशप बने थे.
मार्च 2009 में एक महिला ने उन्हें एक दूसरे पादरी द्वारा किए गए यौन शोषण की कहानी बताई थी. महिला ने बताया कि उन्होंने आर्चबिशप रहते हुए किसी तरह की कार्रवाई नहीं की.
इसके बाद पीड़िता महिला कैथेलिक चर्च के कार्यकर्ताओं के पास पहुंची, जिसके बाद दबाव में आने पर कार्डिनल को कार्रवाई करनी पड़ी.
इसी दबाव के कारण दिसंबर 2011 में जांच कमिटी का गठन किया गया. जांच के छह महीने बाद भी आरोपी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और वो पादरी के रूप में काम करते रहे.
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Image caption वर्जिनिया सलदन्हा 'पादरी मेरी नहीं सुन रहे हैं'
दो दशकों से अधिक समय तक चर्च से जुड़े कई पदों पर महिलाओं के लिए काम करने वाली धर्मनिष्ठ कैथेलिक वर्जिनिया सलदाना कहती हैं, हमने कार्रवाई करने के लिए कार्डिनल को तीन बार कानून नोटिस भेजे और धमकी दी कि अगर वो कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम मामला अदालत में ले जाएंगे."
कार्डिनल में अपने जवाब में कहा कि पादरी मेरी नहीं सुन रहे हैं."
उस दौरान सलदाना ने कहा कि उन्हें चर्च छोड़ना पड़ा क्योंकि, मैं उस आदमी को चर्च में सामूहिक रूप से प्रवचन देते हुए नहीं देख सकती थी और मेरा वहां जाने का मन नहीं था."
वो कहती हैं कि बाद में उस पादरी को निकाल दिया गया लेकिन उसके निकाले जाने की वजह कभी सार्वजनिक नहीं की गई.
अक्तूबर 2011 में कार्डिनल ने व्यक्तिगत रूप से इस मामले में सज़ा तय की, जिसमें “चिकित्सकीय परामर्थ और चेतावनी के साथ वापसी” शामिल थी.
जब हमने प्रक्रिया में तेज़ी लाने और सज़ा के लिए कार्डिनल पर दबाव डाला तो कहा गया कि यह “मामला पेचीदा” है.
सेमिनरी में रहने के बाद आरोपी पादरी को कुछ समय के लिए फिर से चर्च में एक ज़िम्मेदारी दे दी गई और अभी भी वो धार्मिक काम कर रहे हैं.
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अलग-थलग पड़ गया परिवार
इस बीच बलात्कार पीड़ित नाबालिग का परिवार संस्था के द्वारा छोड़ दिया हुआ महसूस कर रहा है और अपनी जिंदगी बुनने की कोशिश कर रहा है.
बच्चे की मां स्वीकार करती हैं कि “यह उनके लिए अकेले युद्ध लड़ने जैसा रहा है.” वो कहती हैं कि उन्हें चर्च ने बहिष्कृत कर दिया था और उन्हें अपने ही समुदाय के भीतर अलग-थलग कर दिया गया.
वो कहती हैं, पुलिस में शिकायत करने के बाद जब हम चर्च में गए तो लोगों ने हमसे बात करने से मना कर दिया. धार्मिक कार्यक्रमों में वो हमारे साथ बैठने से मना कर देते थे."
वो कहती हैं कि जिस बैर का उन्होंने सामना किया था, उसने उन्हें “चर्च छोड़ने पर मजबूर कर दिया”.
वो कहती हैं, लेकिन यह हमारे लिए इतना मुश्किल हो गया कि आखिरकार हमें अपना घर भी बदलना पड़ा. हमने यह सब पीछे छोड़ दिया."
चर्च के सदस्यों का कहना है कि यह एक अलग तरह का बैर है कि पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए इस तरह के मामलों में बोलना भी मुश्किल हो जाता है.
समर्थन न करने वाले पादरी और बैर रखने वाली सामाजिक स्थितियों के चलते यौन शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले कई लोग अपनी आवाज़ को लड़खड़ाता हुआ पाते हैं.