एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटDESHAKALYAN CHOWDHURY/AFP/GETTY IMAGESयूँ तो लालू प्रसाद यादव अपने बाथरूम में टूथ-पेस्ट
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यूँ तो लालू प्रसाद यादव अपने बाथरूम में टूथ-पेस्ट से अपने दाँतों पर ब्रश किया करते थे, लेकिन जब वो लोगों से मिलने अपने बंगले के लॉन में आते थे, तो उनके हाथ में नीम की एक दातून होती थी.
ये उनके दाँतों के लिए तो अच्छी थी ही, उनकी छवि के लिए भी ग़ज़ब का काम करती थी. अपनी इस छवि के लिए लालू हमेशा बहुत सचेत रहते हैं.
अपनी वाकपटुता और गंवई अंदाज़ से दर्शकों और श्रोताओं को हंसाते-हंसाते लोटपोट करने में लालू का कोई सानी नहीं है, लेकिन ये उनकी ख़ुद की बहुत क़रीने से बनाई गई छवि है, जिसके पीछे एक बहुत ही चतुर और प्रखर राजनीतिक दिमाग़ है.
'द मैरीगोल्ड स्टोरी- इंदिरा गाँधी एंड अदर्स' लिखने वाली कुमकुम चड्ढ़ा बताती हैं, लालू बेवक़ूफ़ नहीं हैं. राजनीतिक रूप से बहुत परिपक्व हैं. उनको पता है कि उन्हें क्या करना चाहिए, जिसका असर हो. वो मसख़रे की अपनी छवि के कारण लोगों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचते हैं.
कुमकुम चड्ढ़ा कहती हैं, वो एक 'स्टेट्समैन' तो क़त्तई नहीं हैं. शहरी लोगों के प्रति अपने विरोध को वो बहुत अच्छी तरह भुनाते हैं. अक्सर उनका पसंदीदा वाक्य होता है कि तुम दिल्ली वालों को कुछ पता नहीं है."
लालू के चरवाहा विद्यालय जिन पर दुनिया थी हैरान!
क्रोसना चूहे का स्वाद याद है आपको, लालू जी?
बातचीत में हिंदी और भोजपुरी का मेल
बिहार के किसी भी मुख्यमंत्री ने आज तक अपनी सरकार के चपरासी को दिए गए दो कमरों के सरकारी आवास से राज्य का शासन नहीं चलाया. न ही बिहार का कोई मुख्यमंत्री पटना मेडिकल कालेज में अपने बुख़ार में तप रहे बेटे का इलाज कराने आम लोगों की लाइन में खड़ा हुआ.
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मशहूर पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी किताब 'सबआल्टर्न साहेब- बिहार एंड द मेकिंग ऑफ़ लालू यादव' में लिखते हैं, बिहार के एक सीनियर रिटार्यड अफ़सर ने मुझे बताया कि शुरू में लालू एक अनोखे प्राणी की तरह थे जो हर एक से टकराने की फ़िराक़ में रहता था. आप की समझ में ही नहीं आता था कि आप उन्हें विस्मय से देखते चले जाएं या उन्हें रोकने के लिए कुछ करें. वो एक अजीब बोली बोलते थे, जिसमें हिंदी और भोजपुरी का मिश्रण रहता था. उसमें कहीं-कहीं ग़लत जगहों पर एकाध अंग्रेज़ी के लफ़्ज़ भी घुसा दिए जाते थे."
संकर्षण ठाकुर लिखते हैं, ये चौंका देने वाली बात थी कि मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी वो अपने भाई के चपरासी वाले घर में रह रहे थे. हमने उनसे कहा भी कि इससे प्रशासनिक और सुरक्षा की दिक़्क़तें पैदा होंगी और वेटरनरी कालेज में रहने वालों की ज़िदगी भी मुश्किल हो जाएगी. लेकिन हर बार वो यही जवाब देते थे, हम चीफ़ मिनिस्टर हैं. हम सब जानते हैं. जैसा हम कहते हैं, वैसा कीजिए."
आम लोगों से लालू का 'कनेक्ट'
तमाम विवादों से जुड़े रहने के बावजूद लालू की लोकप्रियता का राज़ है, आम लोगों से उनका 'कनेक्ट.' याद कीजिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के शुरू के दिनों में लालू बिहार की जनता को सिखाया करते थे कि मशीन से किस तरह वोट किया जाता था.
एक बार वो बीबीसी दफ़्तर आए थे और हमारे बहुत इसरार पर उन्होंने अपने उस भाषण को याद किया था, मैं लोगों को बताता था कि लालटेन के सामने उम्मीदवार का नाम लिखा होगा. लालटेन के ठीक सामने हारमोनियम की शक्ल जैसा बटन होगा. उसी बटन को अंगूठे की बग़ल वाली उंगली से 'पुश' करना है. कचकचा के इतनी ज़ोर से मत दबा देना कि मशीन टूट जाए. जब आपका सही वोट होगा तो मशीन जवाब दाबते के साथ बोलेगा पीईईई. अगर पी नहीं बोले तो समझो कुछ दाल में काला है."
लालू यादव को आख़िर कौन सी बीमारी है
'लालू यादव के दिल में नीतीश नीति का शूल'
इमेज कॉपीरइटPRAVEEN JAINचप्पल को जूते पर तरजीह
लालू ने पहली बार जूता तब पहना था, जब उन्होंने एनसीसी की सदस्यता ली थी. कई सालों तक जूता न पहनने की वजह से उनके पैरों की उंगलियों के बीच ख़ासा 'गैप' पैदा हो गया था.
कुमकुम चड्ढ़ा बताती हैं, उनके एक पांव में नाख़ून नहीं थे. वो अक्सर दिखाते थे कि ये एक ग़रीब का पांव है. कई सालों तक उन्होंने जूता नहीं पहना. एक बार एक बैल भी उनके पैर पर चढ़ गया था. वो अपनी ग़रीबी को अपनी आस्तीन पर रख कर चलते थे. वो आज भी पैरों में चप्पल पहनते हैं. जब उनसे इसका कारण पूछा जाता है तो वो कहते हैं, जूता लगाने से दोनो पांव में 'हीट' पैदा होता है."
इमेज कॉपीरइटPRAVEEN JAINमुसहर महिला को दिए पाँच सौ रुपये
लालू की याददाश्त बहुत ग़ज़ब की है. एक बार वो जिससे मिल लेते हैं, उनका नाम और चेहरा कभी नहीं भूलते.
आरजेडी के वरिष्ठ नेता और एक ज़माने में लालू के विरोधी रहे शिवानंद तिवारी याद कहते हैं, एक बार हम लालू के साथ एक पब्लिक मीटिंग में गए थे. वहाँ पर एक बड़ा सा लोहे वाला माइक लटका हुआ था. एक फटी दरी लगी हुई थी. 'ऑर्गनाइज़र' भी वहाँ से नदारद थे. नेता लोग अमूमन देर से पहुंचते हैं. हम लोग थोड़ा पहले पहुंच गए."
जब हम वहाँ पहुंचे तो मुसहर लोगों के टोले में रहने वाले लोगों ने सबसे पहले हमें देखा. वो भागते हुए वहाँ पहुंचे. वहाँ मैंने नोट किया कि एक युवती लालू की नज़रों को पकड़ने की कोशिश कर रही है. उसके हाथ में एक बच्चा था. लालू ने उसको देखते ही पूछा, 'सुखमनी तुम यहाँ कैसे? तुम्हारी शादी यहीं हुई है क्या?' फिर लालू ने उसकी दूसरी बहन का नाम ले कर पूछा कि वो कहाँ है? उसने बताया कि बग़ल वाले गाँव में उसकी भी शादी हुई है. लालू ने तुरंत अपनी जेब से पाँच सौ रुपये का नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा कि इससे बच्चे के लिए मिठाई वग़ैरह ख़रीद लेना."
शिवानंद तिवारी कहते हैं, हम को बड़ा ताज्जुब हुआ कि एक ग़रीब औरत को लालू न सिर्फ़ नाम ले कर बुला रहे हैं, बल्कि उसकी बहन के बारे में भी पूछ रहे हैं. हमने उनसे पूछा कि ये कौन हैं? उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री बनने से पहले जब वो पटना के वेटरनरी कॉलेज में रहा करते थे, तो ये महिला वहीं पास की मुसहर टोला में रहती थी. लालू यादव सालों गुज़र जाने के बाद भी उसे नहीं भूले थे. ये जो लालू यादव की शख़्सियत है, यही उस आदमी की ताक़त है."
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लालू और... समोसे में आलू !जेल से छूटने के बाद लालू का फ़ोन
शिवानंद तिवारी एक और क़िस्सा सुनाते हैं, जब लालू चारा घोटाला मामले में पहली बार जेल गए थे. चारा घोटाला मामले के आवेदनकर्ताओं में हम भी थे. सुशील मोदी थे, रविशंकर प्रसाद और सरयू राय भी थे. हमारी लड़ाई जम कर हुई और उसका नतीजा ये निकला कि लालू यादव को न सिर्फ़ मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, बल्कि जेल भी जाना पड़ा."
वह कहते हैं, जेल से निकलने के दूसरे दिन मैं सुबह अख़बार और चाय ले कर बैठा था. सुबह के साढ़े छह-सात बजे होंगे. उस समय तक हम समता पार्टी के विधायक हो चुके थे. मेरे पास एक टेलिफ़ोन आया कि आप फ़लाने नंबर से बोल रहे हैं? इससे पहले कि हम पूछते कि कौन बोल रहा है, उधर से आवाज़ आई लीजिए बात कीजिए. उधर से लालू यादव बोले, बाबा प्रणाम. आप कल्पना कीजिए, मेरी क्या स्थिति हुई होगी. जिसके ख़िलाफ़ हमने मुक़दमा किया और जिसके ख़िलाफ़ हमने लड़ाई लड़ी और जिसके अंजाम में उसे जेल जाना पड़ा, वो जेल से छूटने के एक दिन बाद मुझे फ़ोन करके कहता है बाबा प्रणाम. ये चीज़ आपको दुनिया के किसी और शख़्स में नहीं मिलेगी."
इमेज कॉपीरइटPRAVEEN JAINमेगा फ़ोन लेकर ट्रैफ़िक नियंत्रण
लालू की लीक से हट कर जीवनशैली उन्हें अपने मतदाताओं से जोड़ती है.
संकर्षन ठाकुर लालू यादव की जीवनी में लिखते हैं, वो पटना के फ़्रेज़र रोड चौराहे पर पहुंच कर हाथ में मेगा फ़ोन लिए ख़ुद ट्रैफ़िक नियंत्रित करने लगते थे. वो अक्सर सरकारी दफ़्तरों और पुलिस थानों का औचक दौरा कर ग़लती करने वाले अधिकारियों को वहीं सज़ा दिलवाते थे. वो पटना मेडिकल कॉलेज में ख़ुद खड़े हो कर इमर्जेंसी वॉर्ड में मरीज़ों के साथ आने वाले लोगों के लिए रैन-बसेरा बनवाते थे."
वो अक्सर बीच खेत में अपना हेलिकॉप्टर उतरवाते थे और लोगों को अपने उड़नखटोले में चक्कर लगवाते थे. वो अपनी मोटर के क़ाफ़िले को अचानक सड़क के किनारे खड़ी कर वहाँ घूम रहे ग़रीब बच्चों को टॉफ़ी बांटते थे. कभी-कभी वो गाँव के ग़रीब किसान के घर पहुंच कर खाना खाने की फ़रमाइश करते थे. वो उनके बच्चों के साथ गाना गाते थे और मर्दों से पूछते थे, खईनी है तुम्हारे पास?"
इमेज कॉपीरइटPtiImage caption लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी इश्क़-विश्क़ से दूर का नाता नहीं
लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी उन्हें साहेब कह कर पुकारती हैं. अपने बाद राबड़ी को मुख्यमंत्री बनाने पर लालू को कई आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था. कुछ साल पहले जब लालू बीबीसी के दफ़्तर आए थे तो हमने उनसे पूछा था कि राबड़ी देवी के अलावा आपका कहीं इश्क़-विश्क़ हुआ?
लालू का जवाब था, हम दिल वाला आदमिये नहीं हैं. ई सब काम हम कभी नहीं किया. राबड़ी देवी से शादी से पहले हमने उनको देखा भी नहीं था. आज कल तो जिससे शादी करना होता है उसकी फ़ोटो मंगाई जाती है. उससे मिलने के लिए पूरा का पूरा परिवार जुटता है और फिर लड़का उससे सवाल जवाब करता है. हमसे कोई क्यों 'लव' करेगा? हम तो गाँव के लोग थे. फ़क़ीर के घर में पैदा हुए थे. अब तो इंटरनेट आ गया है. लोग मोबाइल से 'मेसेज' भेजते हैं. हमारे पास अगर किसी का मोबाइल फ़ोन आ गया तो हमें सुनने के बाद आज भी फ़ोन 'ऑफ़' करना नहीं आता."
इमेज कॉपीरइटPRAVEEN JAINलालू का पालक गोश्त
लालू ख़ुद कहते हैं कि उन्हें खाना बनाने का बहुत शौक़ है - शाकाहारी और मांसाहारी दोनों.
शिवानंद तिवारी बताते हैं, खाने के मामले में सुपर कुक हैं लालू यादव. हम तो कई दफ़ा खाए हैं लालू यादव के यहाँ. एक बार वो मुफ़्ती मोहम्मद सईद के यहाँ से पालक गोश्त की रेसिपी सीख कर आए थे. उन्होंने हमें फ़ोन कर कहा, आइए हम आपको खिलाते हैं. क्या शानदार उसका शोरबा था. उसका स्वाद हम अभी तक भूले नहीं हैं."
इमेज कॉपीरइटFACEBOOK/TEJASHWI YADAVImage caption लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव चूहा भी खाते थे लालू
लालू एक स्वप्न देखने के बाद कुछ दिनों के लिए विशुद्ध शाकाहारी हो गए थे. लेकिन कम लोगों को पता है कि लालू एक ज़माने में चूहे खाने के शौक़ीन थे.
कुमकुम चड्ढ़ा बताती हैं, जब वो रेल मंत्री थे तो उन्होंने मुझे एक बार बताया था कि आप को गाँव के बारे में कुछ नहीं पता है. हम लोग तो चूहा खा कर बड़े हुए हैं. हम चूहे को पकड़ कर उसको ज़मीन में दे मारते थे, और फिर उसको नमक-मिर्च लगा कर आग में भून कर खाते थे. हम चूहियों को नहीं मारते थे, क्योंकि डर रहता था कि वो कहीं गर्भवती न हो. इस बीच लालू के साथी प्रेम गुप्ता ने ये सफ़ाई देने की कोशिश की कि लालू ग़रीबी की वजह से चूहा खाया करते थे. लालू ने तुरंत उनको टोक कर कहा, लोग कुत्ता खा सकता है, तो हम चूहा क्यों नहीं?"
इमेज कॉपीरइटSANJAY YADAV/BBCImage caption चरवाहा विद्यालय के उद्घाटन के वक्त लालू प्रसाद यादव साधना कट हेयर स्टाइल
लालू के हेयर स्टाइल का एक ज़माने में बहुत मज़ाक़ उड़ाया जाता था और लोग 'साधना कट' कह कर उसका उपहास करते थे. लेकिन लालू इसका भी पुरज़ोर जवाब देना जानते थे.
वो कहते थे, हम लड़की तो नहीं हैं न. हम शुरू से ही छोटा बाल रखते हैं. हमारा बाल खड़ा रहता है. हम न कंघी रखते हैं, न अपना मुंह देखते हैं आइना में और न ही कोई मेक-अप करते हैं. बाल बड़ा रखने से माथा खुजलाता है और गर्दन में दर्द होता है. बाल छोटा होने से मैं अपने हाथ से ही कंघी का काम कर लेता हूँ. आज कल सब कोई लड़की की तरह बड़ा बाल रख रहा है. विचित्र सूरत लगता है उनका. बड़ा बाल रखने से कोई भी उसको पकड़ के दुई मुक्का मार सकता है. छोटा बाल रखने से हाथ में बंधाएगा ही नहीं."
इमेज कॉपीरइटPRAVEEN JAINलोक-संगीत के लिए दीवानगी
कॉलेज के दौरान लालू थियेटर किया करते थे. एक बार उन्होंने शेक्सपियर के नाटक 'मर्चेंट ऑफ़ वेनिस' के भोजपुरी रूपांतरण में शायलॉक की भूमिका निभाई थी. लालू को सिनेमा देखने का उतना नहीं, लेकिन बिहार का लोक-संगीत सुनने का बहुत शौक़ है.
शिवानंद तिवारी याद करते हैं, गाँव देहात का जो नाच गाना है, वो लालू को भी बहुत पसंद है. जब वो जेल से निकल कर आए थे, तो हमारे यहाँ चंपारन का एक ग्रुप है. उसे उन्होंने अपने यहाँ गाने के लिए बुलाया था. लोक संगीत के मामले में हम दोनों का टेस्ट मिलता-जुलता है. जब भी उनके यहाँ इस तरह का कोई आयोजन होता है, तो हमें भी फ़ोन आता है, आवा, आवा. गाँव में लौंडे का नाच हो, या चैता हो, हम लोग रातरात भर चैता सुनते थे. भिखारी ठाकुर तो छपरा ज़िला, यानि लालू यादव के ही ज़िले के थे. उनको भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. लालू को उनकी रचनाएं बहुत पसंद हैं."
इमेज कॉपीरइटPtiचारा घोटाले ने गिराया लालू को ऊँचाइयों से
लालू की लोकप्रियता को बहुत बड़ा धक्का लगा जब चारा घोटाले में उनका नाम सामने आया. मार्च, 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दी. इस मामले से लालू लाख कोशिशों के बावजूद बाहर नहीं निकल पाए. आख़िर 30 जुलाई, 1997 को वो पहले मुख्यमंत्री बने जिन्हें आपराधिक कार्यों से न सिर्फ़ अपना पद छोड़ना पड़ा, बल्कि जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.
सुबह 10 बजे जब वो 1, एने मार्ग वाले अपने निवास की पहली मंज़िल से नीचे आए, आंखों में आँसू भर कर अपनी पत्नी और बच्चों को अलविदा कहा और मुख्यमंत्री की सरकारी कार में बैठ कर सीबीआई के दफ़्तर सरेंडर करने गए. उनके समर्थकों ने उनके लिए लालू ज़िंदाबाद के नारे तो लगाए, लेकिन लोग इसके विरोध में बिहार या पटना की सड़कों पर नहीं उतरे. लालू इस झटके से कभी उबर नहीं पाए.
लालू के लिए सड़क, बिजली, पानी बड़ा मुद्दा नहीं
लालू का अभी भी मानना है कि चुनाव बिजली, सड़क और पानी के मुद्दे पर नहीं जीते जाते.
एक ज़माने में लालू के नज़दीक रहे श्याम रजक कहते हैं, लालू जानबूझ कर अपने मतदाताओं को अभाव में रखना चाहते हैं. एक बार उन्होंने अपनी ही चुनाव सभा में कहा था कि अगर सड़कें बनेंगी तो वाहन आएंगे और पुलिस वाले तुम्हारे गाँव जल्दी पहुंचेंगे और तुम पर ज़ुल्म ढाएंगे. छोड़ दो तुम्हें सड़क की ज़रूरत नहीं है."
इमेज कॉपीरइटAFPलालू का ऋण
लालू के लिए रोटी से बड़ी है इज़्ज़त. उन पर भले ही भृष्टाचार के आरोप लगे हों और वो भारतीय राजनीति के कथित रूप से सबसे बड़े जातिवादी नेता हों, लेकिन इस बात से कम लोग इनकार करेंगे कि उन्होंने अपने लोगों को एक पहचान दी है.
कुमकुम चड्ढ़ा कहती हैं, लालू का सबसे मज़बूत पक्ष है, अपने लोगों को एक पहचान देना. मुझे याद है एक बार एक टैक्सी ड्राइवर मुझे ले कर जा रहा था. तब लालू के ख़िलाफ़ हवा थी, क्योंकि यादवों का उनसे मोह भंग हो गया था. उसने कहा लालू ने हमारे लिए ये नहीं किया, वो नहीं किया, पैसा कमाया. उसने वो सब बातें गिनवाईं, जिनके लिए लालू उन दिनों बदनाम हो रहे थे. लेकिन उसने कहा कि लालू का एक ऋण है जो हम लोग कभी नहीं चुका सकेंगे. और वो ऋण है कि लालू ने हम लोगों को आपके बराबर बैठने का मौक़ा दिया."
इस समय लालू चारा घोटाले के कई मामलों में जेल में बंद हैं. वो शायद अब कोई चुनाव भी न लड़ सकें. लेकिन क्या भारतीय राजनीति में उनकी प्रासंगिकता नहीं रही?
शिवानंद तिवारी कहते हैं, वो आदमी आज जेल में बंद है. इसके बावजूद आप बिहार की राजनीति में लालू यादव को माइनस करके वहाँ की राजनीति की कल्पना ही नहीं कर सकते. आज भी अगर आप बिहार के अख़बार पढ़ें और नीतिश कुमार और सुशील मोदी के वक्तव्यों पर आपकी नज़र जाए तो लगता है कि लालू का भूत अभी भी उनके सिर पर सवार है. ये इसलिए है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि समाज में कितनी गहराई तक लालू यादव जमे हुए हैं."