एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption 1642 में बनाई गई मशहूर पेंटिंग द नाइट वॉच 1669 में रेम्ब्रेंट
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption 1642 में बनाई गई मशहूर पेंटिंग द नाइट वॉच
1669 में रेम्ब्रेंट वॉन रिन की 63 साल की आयु में जब मृत्यु हुई तो उन्हें चर्च के एक प्लॉट में दफ़ना दिया गया. उन दिनों ग़रीब लोगों की मौत के 20 साल बाद उनकी अस्थियों को खोदकर निकाल लिया जाता था और फेंक दिया जाता था.
रेम्ब्रेंट के साथ भी ऐसा ही हुआ लेकिन 1909 में आख़िरकार वेस्टरकर्क यानी एम्स्टर्डम की डच रिफॉर्म्ड चर्च की उत्तरी दीवार में उनके नाम का एक स्मारक पत्थर उस स्थान पर जड़ दिया गया जहां उन्हें दफ़न किया गया था. यह आज भी मौजूद है.
निजी जीवन में रेम्ब्रेंट अपनी पत्नी सास्किया से पैदा हुए सभी संतानों से ज़्यादा जिए. एम्स्टर्डम की एक कंपनी के लिए की गई बड़ी चित्रकारी 'द नाइटवॉच' जिस वर्ष पूरी हुई, उसी साल सास्किया की मौत हुई.
रेम्ब्रेंट के सभी बच्चों में टीटस ही वयस्क उम्र तक जी पाया. लेकिन रेम्ब्रेंट से पहले ही उसकी भी मृत्यु प्लेग से हो गई. यह झटका अपने जीवन के आख़िरी दो दशकों में वित्तीय परेशानी से जूझ रहे रेम्ब्रेंट के लिए बहुत बड़ा था.
1656 में अब का रेम्ब्रेंट हाउस म्यूज़ियम इस चित्रकार का आलीशान घर हुआ करता था. इसी साल आर्थिक संकटों से उबरने के लिए रेम्ब्रेंट को इसे बेचना पड़ा था. उस वक़्त टीटस और हेन्ड्रीक ने उनकी आर्थिक मदद की थी. हेन्ड्रीक को रेम्ब्रेंट ने नौकरानी के तौर पर घर में रखा था. उसी वर्ष उनकी सभी कलाकृतियों की नीलामी करनी पड़ी.
इस वर्ष रेम्ब्रेंट की मृत्यु की 350वीं बरसी मनाई जा रही है और इस अवसर पर दुनियाभर में उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई गई है. अपने समय के इस सबसे महान चित्रकार को आख़िर ग़ुरबत ने कैसे घेर लिया?
इमेज कॉपीरइटlouvre museum/getty imagesImage caption टीटस का एक पोट्रेट
षड्यंत्र और संकेत
कई वर्षों तक रेम्ब्रेंट की इस दुर्दशा को उनकी चित्रकारी 'द नाइटवॉच' से जोड़कर देखा गया.
फ़िल्म निर्देशक पीटर ग्रीनअवे के कारण इस चित्रकारी ने कई षड्यंत्रों को भी जन्म दिया. 2007 में आई उनकी फ़िल्म नाइट वॉचिंग और उसके बाद आई डॉक्यूमेंट्री रेम्ब्रेंट्स जे'क्यूज़ में यह विचार रखा गया है कि चित्रकारी में एक हत्या के षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश किया गया है. इसमें ऐसा लगता है जैसे रेम्ब्रेंट की ज़िन्दगी को ख़तरा हो जिससे बाद में उनका जीवन बर्बाद हो गया.
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1936 में एलेक्ज़ेंडर कोरदा की फ़िल्म रेम्ब्रेंट की पेंटिंग में भी कुछ ऐसा ही दिखाया गया था. हर्षोल्लास के साथ जब द नाइट वॉच से पर्दा उठाया गया तो नागरिक सेना के सदस्यों और उनकी पत्नियों की चुप्पी की जगह अचानक ही पत्नियों की हंसी ने ले ली. उसके बाद सैनिकों का गुस्सा फूट पड़ा.
चार्ल्स लॉटन की रेम्ब्रेंट फिल्म में जब रेम्ब्रेंट ने अपने संरक्षक और मित्र जैन सिक्स से चित्रकारी के बारे में ईमानदारी से बताने के लिए कहा तो उसने बड़ी बेताबी से कहा कि इसमें मुझे परछाइयों, अंधेरे और भ्रांति के सिवा कुछ नहीं दिखता.
इसे गंभीर कला के रूप में नहीं लिया जा सकता. मज़े की बात यह है कि जैन सिक्स भी रेम्ब्रेंट के एक महान चित्र का विषय थे. कुछ पलों बाद ही कैप्टन बैनिंग कॉक, जिन्हें चित्र में अपने लेफ्टिनेंट के साथ सुनहरी आभा में दर्शाया गया है, उन्होंने रेम्ब्रेंट के काम को बहुत ही घटिया बताया.
इमेज कॉपीरइटRijksmuseumImage caption अपनी तस्वीर में रेम्ब्रेंट वॉन ने ख़ुद को भी जगह दी थी.
लेकिन ऐसा लगता है कि बैनिंग कॉक ने ही गेरिट लुन्डेंस नामक डच चित्रकार से इसी का एक छोटा रूप तैयार करने को कहा था जो अब लंदन की नेशनल गैलरी में है.
रेम्ब्रेंट की चित्रकारी की यह नकल मूल चित्र के कुछ ही वर्षों के भीतर की गई थी. लुन्डेंस के चित्र से हमें पता लगता है कि रेम्ब्रेंट की यह कलाकृति कैसी दिखती होगी.
दरअसल 1715 में रेम्ब्रेंट के चित्र को ऊपर और बाईं ओर से दो-दो फ़ुट तथा नीचे और दाईं ओर से कुछ इंच काट दिया गया था.
इससे चित्र का मूल रूप बिगड़ गया था और पहले किनारे खड़े बैनिंग कॉक और उनका सहयोगी अब चित्र के ठीक बीच में हो गए थे. इससे चित्र में आगे बढ़ने वाली मूल भावना कुछ खो गई थी.
आज के ज़माने में ऐसा करना अपराध होता लेकिन तब के दिनों में ये होता रहता था. इस चित्र के साथ यह काम उस समय हुआ जब इसे नागरिक सेना कंपनी की बैठक वाले कमरे से हटाकर एम्स्टर्डम सिटी हॉल में नियत स्थान पर लगाया जा रहा था. 1885 में इसे इसकी नई जगह रिज़्स्क म्यूज़ियम में लगा दिया गया जहां इसके लिए विशेष गैलरी का निर्माण किया गया.
एक झूठी कहानी
तो क्या द नाइट वॉच के कारण रेम्ब्रेंट का पतन हुआ? शायद हमें चित्र में किसी हत्या के षड्यंत्र के संकेतों के बजाय उस समय के डच गणराज्य में लोकप्रिय रही चित्रकारी की एक उपविधा के नियमों पर नज़र डालनी होगी जिससे रेम्ब्रेंट भटक गये थे.
ये नियम सिविक मिलिशिया पोट्रेट या गार्डरूम सीन में दिखाई देते हैं. इनसे हमें अंदाज़ा लग जाएगा कि क्या रेम्ब्रेंट के मशहूर चित्र से वो लोग नाराज़ हो गए थे जिन्होंने उनसे ये चित्र बनवाया था.
इमेज कॉपीरइटRijksmuseumImage caption रेम्ब्रेंट की पेंटिंग का एक हिस्सा
निश्चित रूप से यह रेम्ब्रेंट की अब तक की सभी कलाकृतियों में सबसे बड़ी थी और कांट-छांट के बावजूद यह अब भी 12 फ़ीट X 14 फ़ीट (3.65X4.26 मी.) की है. हालांकि इस चित्रकारी में शोरगुल भरा हुआ है लेकिन चित्र में वास्तविकता नहीं दिखाई देती, बल्कि एक खालीपन और विचित्रता नज़र आती है.
इसमें एक कुत्ता भौंक रहा है; ड्रम बजाने वाला अपना बड़ा ड्रम बजा रहा है, बाईं ओर एकदम किनारे पर पीछे देखता हुआ एक लड़का दौड़ते हुए बिगुल ले जा रहा है. एक रक्षक अपनी बन्दूक की नली से छेड़छाड़ कर रहा है, अच्छी तरह तैयार कैप्टन के पीछे एक अन्य रक्षक की बंदूक से गलती से गोली चल जाती है, जिससे निकलता धुआं उसके लेफ्टिनेंट की परयुक्त ऊंची टोपी से मिलकर एक अजीब दृश्य पैदा कर रहा है. दाहिनी ओर एक रक्षक अपनी बंदूक की नली को ध्यान से देख रहा है. उधर चित्र में कुछ लोग प्रमुख चरित्रों के पीछे धक्का-मुक्की में लगे हैं और बड़ी मुश्किल से दिखाई देते हैं.
बैनिंग कॉक के बाईं ओर ऊपर की तरफ़ दिखाने वाली आंख ख़ुद चित्रकार की है. जैसा कि बेल्जियम के चित्रकार वॉन आइक को पसंद था, रेम्ब्रेंट भी पूरे दृश्य में कहीं न कहीं अपने आप को छाप ज़रूर देते थे.
चित्र में चटक रंगों के सुनहरे कपड़ों में दिखने वाली और कमर में मरी हुई मुर्गी लटकाए लड़की इस चित्र का हिस्सा लग भी रही है और नहीं भी लग रही है. दरअसल, एक वास्तविक व्यक्ति दिखने से अधिक वह एक निशान या संकेत के रूप में दिख रही है और मुर्गी या यूं कहें कि उसके स्पष्ट दिखने वाले पंजे बैनिंग कॉक की क्लोवेनियर्स (या मस्केटीयर्स) नामक कंपनी का प्रतीक है.
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इमेज कॉपीरइटErik Smits, RijksmuseumImage caption म्यूज़ियम में रेम्ब्रेंट की पेंटिंग द नाइट वॉच
फिर सवाल यह उठता है कि मुर्गी की जगह बाज़ को क्यों नहीं दिखाया गया जो नागरिक सेना के प्रतीक के रूप में ज़्यादा उपयुक्त होता. शायद रेम्ब्रेंट कैप्टन के नाम का या उसकी ख़ुराक का मज़ाक बनाना चाह रहे थे. मज़े की बात यह है कि प्रतीक का चेहरा रेम्ब्रेंट की सास्किया जैसा ही है.
मिथक के विपरीत रेम्ब्रेंट को लगातार बहुत बढ़िया काम मिलते रहे.
अब आइए उस रक्षक पर नज़र डालें जिसकी बन्दूक से अचानक गोली चल गई और लगभग लेफ्टिनेंट का सिर उड़ाते-उड़ाते रह गया. हमें उसका चेहरा दिखाई नहीं देता. वह भी कम्पनी में होते हुए कंपनी का हिस्सा नहीं लगता. शायद वह भी कंपनी का इतिहास दिखा रहा हो.
हालांकि, कैप्टन और उसके लेफ्टिनेंट को कंपनी के मुखिया के रूप में अच्छी तरह दिखाया गया है, लेकिन रक्षकों की वेशभूषा समसामयिक दृष्टि से काफ़ी साधारण दिखती है. रेम्ब्रेंट ने जब तक अपनी यह चित्रकारी पूर्ण की तब तक बैनिंग कॉक और उसके आदमियों की उपयोगिता काफ़ी कम हो गई थी क्योंकि स्पेन से शांति स्थापित हो चुकी थी.
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लेकिन रेम्ब्रेंट की चिन्ता केवल नागरिक गर्व तक ही सीमित नहीं थी. वह तो एक नाटक को कैनवस पर उभारना चाहते थे जिसमें एक साथ गम्भीरता और हास्य दोनों हो. इसी उद्देश्य से हमें कैप्टन की गंभीरता और चित्र में बाकी अन्य लोगों का हास्य दिखाई देता है. इससे पूर्व किसी ने भी नागरिक सेना का कोई भी ऐसा चित्र नहीं बनाया था.
लेकिन 19वीं सदी में इस चित्रकार को एक बाहरी बताने की कोशिश में पैदा हुए मिथक के विपरीत रेम्ब्रेंट को लगातार बहुत बढ़िया काम मिलते रहे.
रेम्ब्रेंट की समस्याओं में उस सदी के उत्तरार्ध में दो बातों से बढ़ावा मिला. एक तो वह बेतहाशा ख़र्च करते थे, दूसरा रंगों के साथ उनका रिश्ता बहुत गंभीर नहीं था. उनकी शैली फ़ैशन से बाहर जा रही थी.
अब तो रेम्ब्रेंट के पूर्व शिष्य गैरिट डू की चित्रकारी लोगों को अधिक पसंद आने लगी थी. इस वजह से रेम्ब्रेंट को इम्प्रेश्निस्ट यानी संस्कारवादियों/प्रभाववादियों के उदय होने तक प्रतीक्षा करनी पड़ी. उसके बाद फिर से रेम्ब्रेंट का नाम हुआ.
जहां तक द नाइट वॉच का सवाल है, तो उसे यह नाम 1790 के दशक में दिया गया, जब इस चित्र का वार्निश थोड़ा गहरा और मैला हो गया जिससे इसमें रात्रि की कालिमा दिखने लगी.
इससे पहले इसे बड़े नीरस नामों से पुकारा जाता था जैसे द मिलीशिया कंपनी ऑफ डिस्ट्रिक्ट II अंडर द कमांड ऑफ कैप्टन फ्रैंस बैनिंग कॉक, या द शूटिंग कंपनी ऑफ फ्रैंस बैनिंग कॉक एंड विलेम वॉन राइटेनबर्च. 1946 में इसकी गंदगी साफ़ होने के बाद भी इसका रहस्य पहले जैसा ही है.