एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesसुप्रीम कोर्ट ने अपहरण और हत्या के एक मामले में नामी रेस्टोरेंट चेन सर्वणा भ
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सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण और हत्या के एक मामले में नामी रेस्टोरेंट चेन सर्वणा भवन के मालिक पी राजगोपाल की आजीवन कारावास की सज़ा को बरक़रार रखा है.
सुप्रीम कोर्ट ने राजगोपाल को 7 जुलाई तक आत्मसमर्पण करने को कहा है.
राजगोपाल को 18 साल पहले अक्तूबर 2001 में प्रिंस संतकुमार नामक युवक का अपहरण करने और बाद में हत्या करने का दोषी पाया गया था.
संतकुमार की हत्या इसलिए की गई थी ताकि राजगोपाल उनकी (संतकुमार) पत्नी से शादी कर सकें.
मद्रास हाईकोर्ट ने साल 2009 में इस मामले में राजगोपाल को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाते हुए कहा था कि ये हत्या 'निश्चित इरादे' के साथ की गई थी. इससे पहले साल 2004 में विशेष अदालत ने राजगोपाल और उनके पाँच साथियों को 10 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई थी.
मद्रास हाईकोर्ट ने राजगोपाल पर 55 लाख रुपये का जुर्मना भी लगाया था, जिसमें से 50 लाख रुपये का मुआवज़ा जीवनज्योति (संतकुमार की पत्नी) को देने का आदेश दिया गया था.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखा.
क्या था पूरा मामला
इमेज कॉपीरइटGetty ImagesImage caption सर्वणा भवन रेस्टोरेंट चेन के दुनियाभर में 80 आउटलेट्स हैं और हज़ारों कर्मचारी इनमें काम करते हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार दस्तावेज़ बताते हैं कि राजगोपाल ने ज्योतिषी की ही सलाह पर जीवाज्योति से शादी करने की ठानी थी. हालाँकि उस समय उनकी दो पत्नियां थी.
न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि शादी के कुछ महीने बाद संतकुमार और जीवाज्योति एक ट्रैवल एजेंसी शुरू करने के लिए राजगोपाल और जीवाज्योति के अंकल के पास ऋण लेने गए थे. लेकिन राजगोपाल के मन में जीवाज्योति को लेकर भावनाएं पैदा हो गईं. वह उसे रोज़ाना कॉल करने लगे और तोहफ़े में महंगे आभूषण भेजना शुरू कर दिया.
28 सितंबर 2001 को आधी रात को राजगोपाल जीवाज्योति और संतकुमार के घर आए और उन्हें चेतावनी दी कि दो दिन के भीतर अपना रिश्ता तोड़ लें. राजगोपाल ने जीवाज्योति से कहा कि उनकी दूसरी पत्नी ने भी पहले उन्हें ठुकरा दिया था, लेकिन अब वो 'रानी' की तरह रह रही हैं.
संतकुमार और उनकी पत्नी ने वहाँ से भागने की कोशिश की, लेकिन राजगोपाल ने पाँच कर्मचारियों ने उन्हें जबरन एक कार में बिठा दिया और केके नगर स्थित एक गोदाम में ले गए. वहाँ राजगोपाल और उनके साथियों ने संतकुमार की पिटाई की. वे किसी तरह से 12 अक्तूबर को वहाँ से भाग निकले और शहर पुलिस कमिश्नर के दफ़्तर पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई. छह दिन बाद राजगोपाल के कर्मचारियों ने उन्हें फिर अग़वा कर लिया और उन्हें ज़बरदस्ती अलग कर दिया.
बाद में संतकुमार का शव काडाइकोनाल के टाइगर चोला के जंगलों से बरामद हुआ. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उनकी मौत गला दबाकर की गई थी.
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राजगोपाल ने 23 नवंबर को आत्मसमर्पण किया, लेकिन अगले साल 15 जुलाई 2003 को उन्हें ज़मानत मिल गई.
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अर्श से फर्श तक
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न्यूयॉर्क टाइम्स की साल 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ राजगोपाल ने 1981 में केके नगर में अपने पहला रेस्टोरेंट खोला. इससे पहले उनकी किराने की दुकान थी और एक ज्योतिषी के कहने पर ही उन्होंने रेस्टोरेंट के कारोबार में उतरने का फ़ैसला किया था. ज्योतिषी ने उन्हें सलाह दी थी कि उन्हें ऐसा काम करना चाहिए, जिसमें आग शामिल हो. अख़बार ने राजगोपाल के संस्मरण के हवाले से लिखा, “मुझे ये सलाह दी गई कि मुझे सस्ते मसालों का इस्तेमाल करना चाहिए और स्टाफ़ को जितना कम हो सके, उतना वेतन देना चाहिए. मुझे उनकी सलाह क़त्तई पसंद नहीं आई और इस सलाहकार को मैंने निकाल दिया.”
राजगोपाल ने नारियल तेल और उच्च गुणवत्ता के मसालों का इस्तेमाल किया और नतीजा ये हुआ कि एक ही महीने में उन्हें 10 हज़ार रुपये का घाटा हो गया. घाटे की वजह ये थी कि उनके मेन्यू कार्ड में कोई भी चीज़ एक रुपये से अधिक क़ीमत का नहीं था.
लेकिन खाना लज़ीज़ था तो लोगों को पसंद आया और देखते ही देखते घाटे का ये कारोबार मुनाफ़े का सौदा बन गया. जैसे-जैसे मुनाफ़ा बढ़ा, उन्होंने अपने कर्मचारियों की तनख्वाहें बढ़ाई और कई और सहूलियतें भी दी जो उस दौरान भारतीय रेस्टोरेंटों में काम कर रहे कर्मचारियों को नहीं मिला करती थी.
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