एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटPTIकेरल की वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदवारी
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केरल की वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदवारी जहां एक ओर उनकी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं के बीच जोश पैदा करती दिखती है वहीं दूसरी तरफ उनके पार्टी के नेताओं के बीच की गुटबाजी को पृष्ठभूमि में ले जाती है.
हैरत की बात नहीं कि, आम लोगों के बीच कांग्रेस का एकजुट चेहरा ही नज़र आ रहा है, चाहे वो टैक्सी ड्राइवर हों या होटल कर्मचारी या फिर कलपेट्टा में गुरुवार को राहुल गांधी के नामांकन पत्र भरने के दौरान खड़े आसपास के लोग हों.
वायनाड से राहुल की उम्मीदवारी ने अल्पसंख्यकों के एक वर्ग की माक्सवार्दी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की ओर जाती निष्ठा पर लगाम लगाने का काम किया है.
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पहले अल्पसंख्यकों को यह डर था कि वायनाड में कांग्रेस इतनी मज़बूत नहीं कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से मुक़ाबला कर सके और राज्य में माकपा के ही नेतृत्व में लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) की सरकार चल रही है.
दरअसल, केरल की राजनीति के जानकारों का कहना है कि राज्य इकाई के अनुरोध पर राहुल गांधी के चुनाव लड़ने के फ़ैसले से पहले केरल की इस वायनाड सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ओमेन चांडी और विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला के बीच अपने पसंदीदा उम्मीदवार चुनने को लेकर मुक़ाबला चल रहा था.
राजनीतिक विश्लेषक और एशियानेट न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ़ एमजी राधाकृष्णन ने बीबीसी से कहा, “राहुल की उम्मीदवारी से कांग्रेस पार्टी के प्रति स्थानीय अल्पसंख्यकों के नज़रिये में बदलाव और लेफ़्ट की तरफ़ खिसकती उनकी वफ़ादारी पर लगाम लगाने का काम किया है. साथ ही इससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच पार्टी की छवि भी बढ़ी है. स्पष्ट है कि राहुल गांधी, मोदी विरोधी राजनीति के प्रतीक के रूप में उभरे हैं.”
लेकिन, केवल अल्पसंख्यक ही नहीं हैं जो इस लोकसभा सीट से अपने प्रतिनिधि के रूप में राहुल गांधी की उम्मीदवारी को लेकर उत्साहित हैं.
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'राहुल गांधी बाहरी नहीं'
कलपेट्टा रोड शो के दौरान आसपास खड़े लोगों में एक व्यक्ति से पूछा गया कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एनडीए के उम्मीदवार के उस आरोप पर क्या प्रतिक्रिया है कि राहुल गांधी बाहरी व्यक्ति हैं. तो उन्होंने कहा कि राहुल गांधी बाहरी व्यक्ति नहीं हैं. एक भारतीय हैं. हमारे नेता हैं. हमें एक उदारवादी नेता चाहिए. इसलिए हम यहां राहुल गांधी का समर्थन कर रहे हैं.
अयप्पा स्वामी के सबरीमला मंदिर में रजस्वला महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लागू करने पर लेफ़्ट फ्रंट सरकार के कड़े रुख़ ने हिंदुओं के एक वर्ग को बीजेपी की तरफ़ धकेल दिया था.
सामाजिक आधार के कारण बड़े पैमाने पर हिंदुओं की पार्टी समझी जाने वाली सीपीएम से भी हिंदुओं का एक धड़ा छिटक गया, क्योंकि उसने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था.
उस दौरान, कांग्रेस को बीजेपी की 'बी' टीम भी कहा गया क्योंकि उन्होंने भी (रजस्वला महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की इजाज़त पर) परंपरा के चलते रहने का समर्थन किया था. इससे अल्पसंख्यक कांग्रेस से कुछ हद तक दूर हो गए थे.
ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने तब जो अवसरवादी फ़ैसला किया उससे अब उसे मदद मिल रही है, क्योंकि बीजेपी के उलट कांग्रेस ने एलडीएफ़ के रुख़ का विरोध करने के लिए हिंसक तरीके नहीं अपनाए थे.
कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “निश्चित रूप से उनकी उम्मीदवारी से लोग हमारी पार्टी का समर्थन करने में अधिक आत्मविश्वास महसूस कर रहे हैं.”
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इमेज कॉपीरइटPTIतमिलनाडु, कर्नाटक में नहीं पड़ रहा असर
लेकिन, जहां एक ओर केरल की इकाई को राहुल गांधी की उम्मीदवारी से जितना लाभ होता दिख रहा है, वहीं पड़ोसी राज्यों कर्नाटक के मैसूरु और चामराजनगर और तमिलनाडु के थेनी और नीलगिरी में ऐसा प्रभाव नहीं देखा जा रहा है. (केरल की वायनाड लोकसभा सीट तमिलनाडु, कर्नाटक के साथ तीन राज्यों के संगम को मिलाकर बना है).
कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों की स्थिति केरल में कांग्रेसी नेताओं के उस दावे से बिल्कुल उलट है कि राहुल की उम्मीदवारी का पूरे दक्षिण भारत में प्रभाव होगा. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं करना चाहते ताकि केरल के उनके समकक्षों को कोई शर्मिंदगी न हो.
चेन्नई स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ओआरएफ़) के निदेशक एन सत्यमूर्ति ने कहा कि, “डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करने वाले पहले व्यक्ति थे कि उनकी पार्टी राहुल के प्रधानमंत्री बनने का समर्थन करेगी. डीएमके की तरफ से यह प्रस्ताव ज़मीनी स्तर पर काफ़ी काम करने के बाद आया था. तमिलनाडु में कई महीने पहले ही चुनावी अभियान शुरू हो चुका है.”
सत्यमूर्ति ने कहा, “वास्तविकता यह है कि तमिलनाडु में लोगों का ध्यान लोकसभा चुनाव की जगह 18 विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे उप-चुनावों पर ज़्यादा है. धीरे-धीरे सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक और द्रमुक बीच इसे लेकर रस्साकशी बढ़ रही है. यदि मुख्यमंत्री ई पलानीसामी को इनमें से 10-11 भी नहीं मिलती तो उनकी सरकार गिर सकती है.”
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धारवाड़ विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर हरीश रामास्वामी भी यह नहीं मानते कि राहुल के वायनाड में खड़ा होने से मैसूरु या चामराजनगर के निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस को कोई फायदा होगा.
प्रोफ़ेसर रामास्वामी कहते हैं, “यहां चुनाव ज़्यादातर स्थानीय स्तर पर है और मुझे उनकी उम्मीदवारी का कोई असर पड़ता नहीं दिखता है. उनकी उम्मीदवारी उनके उतरने से पड़ने वाले प्रभाव की जगह उनके लिए सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र के चयन को लेकर ज़्यादा है.”
संक्षेप में कहें तो लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ़ ने विपक्षी एलडीएफ़ की तुलना में हमेशा ही अधिक सीट जीती हैं. इस बार, यह पिछले चुनावों की तुलना में बेहतर कर सकती है.