एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVermaतीन मई कोजब 200 किलोमीटर की रफ़्तार से भी तेज़ आंधी ने तनावर दरख़्तों को
इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVerma
तीन मई कोजब 200 किलोमीटर की रफ़्तार से भी तेज़ आंधी ने तनावर दरख़्तों को तिनकों की तरह जड़ से उखाड़ फेंका था, सैकड़ों किलो वज़नी बसें और ट्रकहवा में उछाल दी गई थीं, जिस दिन ख़ुद जगन्नाथ की आरामगाह की दीवारें तक कांप उठीं थीं,उस वक्तपुरी के बिड़िपोड़िया गांव के दलितों को अछूत बताकर सरकारी शिविर में शरण की जगह दुत्कार मिल रही थी.
'सब दरवाज़े बंद थे, हमने मिन्नतें कीं, लेकिन किसी ने हमें जगह नहीं दी. हरिजन हैं ये कहकर दुत्कार दिया,' बिनिता गोछाएत बार-बार भर्रा जाती आवाज़ के बीच बताती हैं.
पास ही ईंटों को जोड़कर बनाए गए चूल्हे पर कड़ाही में आलू उबल रहा है. वहीं, बरगद के एक गिरे पेड़ के तने की एक तरफ़ रखा है एल्यूमिनियम का एक घड़ा, ज़ंग लगी एक साइकिल और ढीले अस्थि-पंजर वाला एक फोल्डिंग टेबल.
जड़ से उखड़ गए बरगद का यही पेड़ पिछले हफ़्ते भर से बिनिता गोछाएत और दूसरे दो दलित परिवारों का आशियाना है.
त्रिनाथ मलिक कहते हैं, “जब हमने दो तारीख़ की शाम में सुना कि तूफ़ान आ रहा है तो हम लोग स्कूल चले गए. वहां लोगों ने हमें घुसने नहीं दिया, कहा तुम लोग डोम हो, तुम्हें हम जगह नहीं दे सकते.”
इस पर प्रशासन का कहना है कि वो मामले की जांच करवाएगा.
इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVerma
गांव का स्कूल तब साइक्लोन सेंटर के तौर पर काम कर रहा था और गांव के काफ़ी लोग यहां प्रशासन के कहने पर, या ख़ुद से शिफ्ट हो चुके थे.
एक कमरा बड़ी गुहार के बाद इन दलित परिवारों को दिया तो गया मगर दूसरों से अलग, पक्के कमरों से दूर. पर एस्बेस्टस शीट की छत 200 किलोमीटर की रफ़्तार से भी तेज़ आंधी का सामना भला कबतक कर पाती?
पढ़ें-ओडिशा ने ऐसे सीखा तूफ़ानों से टकराना
फणी तूफ़ान का क़हर तस्वीरों में
“छत टूट गया. हम 10-15 लोग बरामदे की छत के नीचे दुबक कर बैठ गए. हम लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि प्रभु हमें बचा लो. जब हवा तेज़ हुई तो हम 15 आदमी वहीं बरामदे में बारिश से तर-बतर खड़े होकर रह गए,” उस रात को याद कर बनिता गोछाएत की आवाज़ फिर भर्रा जाती है.
'खाने को कुछ नहीं था'
इन परिवारों ने रात नारियल खाकर गुज़ारी और उसके चार दिन बाद तक उन्हें खाने को कुछ हासिल नहीं हुआ.
इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVerma
ख़ुद के साथ हो रहे इस भेदभाव के ख़िलाफ़ कुछ दलितों ने आवाज़ भी उठाई और एक पक्के कमरे का दरवाज़ा तोड़कर अंदर भी घुसे, लेकिन उन्हें पुलिस से पकड़वा देने की धमकी मिलने लगी.
रीना मलिक कहती हैं, ''मैंने धक्के देकर दरवाज़ा तोड़ दिया, हममें झड़प हुई लेकिन वो थाने में शिकायत दर्ज कराने की धमकी देने लगे तो हम सोचने लगे कि अगर सचमुच में मामला दर्ज हो गया तो हम क्या करेंगे. हमारे पास तो पैसे भी नहीं हैं, एक दिन खाते हैं तो एक दिन भूखे मरते हैं.''
“घर टूट गया और उसमें पानी भर गया था तो हम स्कूल गए थे, लेकिन वहां भी पानी में ही बैठना पड़ा तो हम वापस चले आए, अब तो यही बरगद हमारा घर है”, रीना की सास मीना मलिक कहती हैं.
तिनके-तिनके होकर बिखर गए आशियाने और सूख रहे इस बरगद के दरख़्त के आस-पास खुशियों का हल्का सा झोंका महसूस किया जा सकता है. छह दिनों के बाद गुरुवार को भात जो बना है. सरकारी मदद के नाम पर प्रति व्यक्ति किलो भर दिए गए चावल से तैयार.
इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVerma
मगर कड़वीं यादें हैं कि जाने का नाम नहीं लेतीं.
'छुआछूत का ज़माना नहीं गया'
अनिल गोछाएत ने सातवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, वजह पूछने पर कहते हैं कि स्कूल दूर है और वो पावों की वजह से साइकिल नहीं चला सकते. लेकिन फिर बात धीरे-धीरे खुलती है.
अनिल कहते हैं, ''स्कूल में मुझसे कोई मेल-जोल नहीं करता था. दूसरे जाति के लड़के मुझसे बात नहीं करते थे. हम सबसे अलग अकेले ही बैठते थे. छुआछूत का ज़माना नहीं गया. अभी भी हमें दलित समझा जाता है. उस दिन भी वही हुआ.''
हम पेड़ के नीचे रह रहे परिवार से बात कर रहे होते हैं, हमारी मुलाक़ात लुंगी पहने और कंधे पर गमछा डाले मागा मलिक से होती है, जो बाजा बजाने के लिए बांस का सामान बनाने का काम करते हैं.
इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVerma
हमारे कहने पर वो और इस बाजे के साथ ओडिशा के सबसे बड़े देव जगन्नाथ की प्रशंसा में एक भजन गाकर सुनाते हैं. वह ये भी बताते हैं कि उन्हें परिवारों में मंगल अवसरों पर बुलाया जाता है, लेकिन लोग उन्हें बाहर बिठाते हैं और उन लोगों को पीने के लिए पानी तक नहीं दिया जाता.
दलितों के साथ छुआछूत की घटना को लेकर पुरी के कलक्टर बलवंत सिंह कहते हैं कि अगर ऐसी किसी तरह की घटना हुई है तो ज़िम्मेदार अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
इमेज कॉपीरइटBBC/AnshulVerma
ओडिशा में उन्नीसवीं सदी में एक भयंकर अकाल आया था जिसके बाद एक सरनेम 'छतर खिया' कुछ लोगों के नाम के आगे लगाया जाने लगा. ये उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है जिन्होंने सभी के साथ बैठकर सरकारी शिविरों में खाना खाया था.
लेकिन लगता है डेढ़ सौ से अधिक सालों में कुछ भी नहीं बदला.
FOREX.com
विनियमितFXTM
विनियमितFVP Trade
घोटाला करने वाले दलालEightCap
विनियमन के साथBKYHYO
शिकायत केंद्रित हैRakuten Securities Australia
विनियमन के साथFOREX.com
विनियमितFXTM
विनियमितFVP Trade
घोटाला करने वाले दलालEightCap
विनियमन के साथBKYHYO
शिकायत केंद्रित हैRakuten Securities Australia
विनियमन के साथFOREX.com
विनियमितFXTM
विनियमितFVP Trade
घोटाला करने वाले दलालEightCap
विनियमन के साथBKYHYO
शिकायत केंद्रित हैRakuten Securities Australia
विनियमन के साथFOREX.com
विनियमितFXTM
विनियमितFVP Trade
घोटाला करने वाले दलालEightCap
विनियमन के साथBKYHYO
शिकायत केंद्रित हैRakuten Securities Australia
विनियमन के साथ