एब्स्ट्रैक्ट:Image caption मिमि चक्रबर्ती के साथ ममता बनर्जी बड़े पर्दे के सितारे ज़मीन पर उतरें तो उन्हें देखने
Image caption मिमि चक्रबर्ती के साथ ममता बनर्जी
बड़े पर्दे के सितारे ज़मीन पर उतरें तो उन्हें देखने वालों की कमी नहीं होती. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की टिकट पर लड़ रहीं मिमि चक्रबर्ती और नुसरत जहां के रोड शो में सेल्फ़ी लेनेवालों की भीड़ यही बताती है.
तीस साल की मिमि और उनतीस की नुसरत का राजनीति में ये पहला कदम है.
फ़िल्मी करियर की ढलान पर खड़ीं मूनमून सेन और शताब्दी रॉय जैसी अभिनेत्रियों के बाद इस बार ममता बनर्जी टॉलीवुड के उभरते चेहरों को साथ लाई हैं.
देश की सभी पार्टियों के मुकाबले महिलाओं को सबसे ज़्यादा, चालीस फ़ीसदी टिकट देने के ऐलान से तृणमूल कांग्रेस ने ख़ूब वाहवाही बटोरी थी.
इन्हीं 17 महिलाओं में से चार फ़िल्मी सितारे हैं.
मुस्लिम बहुल आबादी वाले बासिरहाट लोकसभा क्षेत्र में पिछले दस साल से तृणमूल ही जीतती आई है.
इस बार वहां से उम्मीदवार बनाई गई नुसरत मानती हैं कि उनका एकमात्र हथियार यही है कि लोग उन्हें पहचानते हैं.
एक रोड शो में जब मैं उनसे मिली तो वो बोलीं, “शुरू में सब नुसरत को देखने आते थे, पर प्यार, विकास और सांप्रदायिक सद्भाव की मेरी बातें सुनने के बाद अब वो मेरे भाषण के लिए आ रहे हैं.”
दो महीने से बंगाल की उमस भरी घुटन वाली गर्मी में नुसरत बासिरहाट के ज़्यादातर ग्रामीण इलाकों में प्रचार में जुटी हैं.
Image caption जसमीना परवीन
बासिरहाट के बदुरिया तक वो नहीं पहुंचीं पर उनकी चर्चा है.
कॉलेज में बी.ए. की पढ़ाई पूरी कर रहीं जसमीना परवीन ने उन्हें देखा है.
स्कूल-कॉलेज जानेवाली लड़कियों को ममता बनर्जी सरकार की ओर से दी गई साइकिल से वो सिनेमा जो चली जाती है.
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दीदी का ज़ोर
उन्हें नुसरत का अभिनय पसंद है और उनके सामाजिक काम में अनुभवी ना होने का कोई मलाल नहीं.
जसमीना कहती हैं, “लड़का हो या लड़की, जो देश का काम करे वो अच्छा है. नुसरत के पास ममता दीदी हैं ना, वो उनसे सीख जाएंगी.”
जसमीना को पढ़ाई पूरी करने के लिए सरकार की कन्या श्री योजना से आर्थिक मदद भी मिली है. उनके लिए ममता दीदी ही सब कुछ हैं, मसीहा भी और मार्गदर्शक भी.
चलते-चलते मैं पूछती हूं कि वो ख़ुद राजनीति में आना चाहेंगी तो दबे शब्दों में बंगाल के इस छोटे से गांव की बीस साल की जसमीना मुस्कुरा कर कहती हैं, “क्यों नहीं?”
जसमीना के ही गांव के रमज़ान भी इस चुनाव में पहली बार वोट देंगे. वो भी ममता बनर्जी के फ़ैसले को सही मानते हैं.
ड्राइवर का काम करनेवाले रमज़ान कहते हैं, “फ़िल्म वाले खड़े करने से ज़्यादा वोट मिलता है, बाक़ि सब धीरे-धीरे सीख जाता है, दीदी के ज़ोर पर सब चलता है.”
पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी ने बार-बार फ़िल्मी हस्तियों को चुनावी मैदान में उतारा है और जीत भी हासिल की है.
इनमें से कई महज़ अपने संसदीय क्षेत्र का चेहरा बने रहे तो कुछ ने इस मौके से राजनीति में पहचान बना डाली.
पश्चिम बंगाल में तीन दशकों तक चले वामपंथी दौर में राजनीति में ऐसे 'बाहरी' उम्मीदवारों को कभी जगह नहीं दी जाती थी लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इसे चुनावी रणनीति ही बना लिया है.
जाधवपुर लोकसभा सीट पर मिमि चक्रबर्ती के ख़िलाफ़ कोलकाता के पूर्व मेयर, कद्दावर वाम नेता बिकाश रंजन भट्टाचार्य खड़े हैं.
ये सीट भी बासिरहाट की ही तरह पिछले दस साल से तृणमूल जीतती आई है.
Image caption मिमि चक्रबर्ती
मिमि कहती हैं, “हमारी पार्टी में क्रिकेटर, डॉक्टर सब पेशे के लोग हैं, दीदी ने साफ़ कहा है कलाकार को राजनीति में आना चाहिए और मैं तो युवा भी हूं, मुझसे बेहतर नए वोटरों से कौन जुड़ पाएगा?”
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युवा वर्ग की उम्मीद
युवा वर्ग इनसे कितना आकर्षित है, इसकी सुध लेने के लिए मैं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र मानेजाने वाले रबींद्र सदन गई.
दीपानिता कोले फ़िल्म और ऐनिमेशन की पढ़ाई कर रही हैं. वो प्रभावित नहीं, उत्तेजित दिखीं और दावा किया कि जनता ने अगर इन्हें वोट दिया तो वो काम की उम्मीद से नहीं सिर्फ़ चेहरे की ख़ूबसूरती के लिए होगा.
वो बोलीं, “वो हैंड ग्लव पहनकर हाथ मिलाती हैं, ख़ुद को बहुत ऊंचा समझती हैं, सब दिखावा है, किसे पता है कि वो देश के लिए क्या करेंगी.”
आसनसोल से चुनाव लड़ रहीं लोकप्रिय अभिनेत्री रह चुकीं मूनमून सेन की चर्चा भी हुई.
उनके लोकसभा क्षेत्र में मतदान को दौरान भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो की कार पर हमले की ख़बर के बारे में उनकी टिप्पणी मज़ाक की वजह थी.
सोरबोरी रॉय ने कहा, “वो बोलीं उस दिन बेड डी नहीं मिली इसलिए कुछ पता नहीं, ऐसा कोई बोलता है क्या, ये क्या पॉलिटिशियन है?”
कई लोगों का ये भी मानना था कि फ़िल्म से राजनीति में आए उम्मीदवार पार्टी के हाथ में कठपुतली बनकर रह जाते हैं और राजनीति में किसी तरह के बदलाव नहीं ला पाते.
मिमि और नुसरत ने इससे पहले राजनीतिक या सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय नहीं रखी है.
इसी साल फ़रवरी में बंगाल पर राजनीतिक व्यंग्य वाली फ़िल्म 'भविष्योतेर भूत' रिलीज़ होते ही अचानक सभी सिनेमा हॉल्स से उतर गई.
दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित सौमित्र चैटर्जी, पद्म श्री अपर्णा सेन और अभिनेता सब्यसाची चक्रबर्ती जैसी हस्तियों ने 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के हक़ में ख़ूब आवाज़ उठाई.
नुसरत जहां और मिमि चक्रबर्ती ख़ामोश रहीं.
अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने फ़िल्म पर 'वर्चुअल बैन' लगाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार पर बीस लाख रुपए जुर्माना लगाया और उसे आज़ादी से प्रदर्शित किए जाने की हिदायत दी.
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बदलाव
मर्दों के वर्चस्व वाले राजनीतिक परिवेश में ममता बनर्जी ने अपना एक मकाम बनाया है.
नुसरत और मिमि दोनों ने ही कहा कि वो उनकी ऊर्जा, संकल्प शक्ति और लोगों के लिए काम से प्रभावित हैं.
नुसरत ने बताया कि उन्होंने अपना पहला वोट ममता दीदी को ही दिया था.
मिमि ने कहा कि बंगाल का सबसे बुलंद सितारा ममता बनर्जी हैं.
औरतों के लिए सरकारी योजनाएं लाने और राजनीति में उन्हें भूमिका देने की पहल कर रही ममता बनर्जी क्या ये सब पार्टी के चुनावी हित के लिए कर रही हैं या इससे औरतों का सशक्तिकरण होगा?
इसका जवाब काफ़ी हद तक मिमि और नुसरत जैसे नई राजनीतिक सिपहसलारों को देना होगा.