एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटReutersभारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संवैधानिक अनुच्छेद 3
भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संवैधानिक अनुच्छेद 370 को हटाने का फ़ैसला किया है.
गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में इस संबंध में सदन और देश को सूचित करते हुए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया.
अमित शाह ने इस राज्य के संबंध में एक पुनर्गठन विधेयक भी सदन के सामने रखा जिसमें जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा वापस लेकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का प्रस्ताव है.
इस बिल को दोनों सदनों में पारित होना है. अगर यह बिल पारित हो गया तो इससे भारत प्रशासित कश्मीर में क्या बदल जाएगा, इस संबंध में बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने संविधान विशेषज्ञ कुमार मिहिरसे बात की.
अब तक सिर्फ़ 'स्थायी नागरिक' का दर्जा प्राप्त कश्मीरी ही वहां ज़मीन ख़रीद सकते थे लेकिन 370 हटने के बाद ऐसा नहीं होगा. उसके बाद वहां उन लोगों के ज़मीन ख़रीदने का रास्ता भी खुल जाएगा जिनके पास 'स्थायी नागरिक' का दर्जा नहीं था.
अब तक सिर्फ़ 'स्थायी नागरिकों' को ही प्रदेश सरकार की नौकरियां मिलती थीं लेकिन अब यह सबके लिए खुल जाएगा.
अब तक क़ानून व्यवस्था मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी होती थी, लेकिन अब वह सीधे केंद्र सरकार के अधीन होगी और गृह मंत्री प्रदेश में अपने प्रतिनिधि उपराज्यपाल के ज़रिये क़ानून-व्यवस्था संभालेंगे.
संसद की ओर से बनाए गए हर क़ानून अब वहां प्रदेश की विधानसभा की मंज़ूरी के बिना लागू होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों पर भी अमल लागू हो जाएगा.
प्रदेश के अलग झंडे की अहमियत नहीं रहेगी. इसका भविष्य संसद या केंद्र सरकार आधिकारिक तौर पर तय करेगी.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह से घटकर पांच साल का हो जाएगा.
महिलाओं पर लागू स्थानीय पर्सनल क़ानून बेअसर हो जाएंगे.
संसद या केंद्र सरकार तय करेगी कि इसके बाद आईपीसी की धाराएं प्रदेश में लागू होंगी या स्थानीय रनबीर पीनल कोड (आरपीसी).
इस पर भी फ़ैसला लिया जाएगा कि पहले से लागू स्थानीय पंचायत क़ानून जारी रहेंगे या उन्हें बदल दिया जाएगा.
ये वो बदलाव हैं जो अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने के बाद कश्मीर में दिखेंगे. लेकिन अभी वहां हालात बिगड़ने से बचाने के लिए भारत सरकार ने बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की तैनाती की है और टेलीफोन और इंटरनेट सेवाओं को अनिश्चित समय के लिए बंद कर दिया है.
कश्मीर में मौजूद बीबीसी संवाददाता आमिर पीरज़ादा ने बताया कि शायद यह पहली बार है जब कश्मीर में लैंडलाइन सेवाओं को भी बंद कर दिया गया है. पुलिस और प्रशासन अधिकारियों को सैटेलाइट फोन जारी किए गए हैं क्योंकि उनके फोन भी बंद हैं. सरकार के भीतर भी सैटेलाइट फोन के ज़रिये ही बातचीत हो रहा है.
आमिर ने बीबीसी दिल्ली दफ़्तर में टेलीफोन करके बताया, “मैं अभी जहां से आपसे बात कर रहा हूं, यह एयरपोर्ट के बाहर एक ढाबा है, वहां का टेलीफोन है. यह शायद पूरे कश्मीर का इकलौता लैंडलाइन फोन है जो काम कर रहा है.”
उन्होंने बताया, “हम एसआरटीसी के एक टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर पर पहुंचे तो वहां यूपी-बिहार और दूसरे इलाक़ों से आए कई मज़दूर थे. हमने उनसे पूछा कि आप लोगों को यहां से जाने के लिए कहा गया था, आप गए क्यों नहीं? उनका कहना था कि उनके पैसे यहां फंसे हुए थे इसलिए उन्हें देर हो गई और आज सुबह उन्हें कोई बस नहीं मिली. वे पांच-छह घंटे से वहां इंतज़ार कर रहे थे.”
“अभी लोग काफ़ी डरे हुए हैं और घरों से बाहर नहीं आ रहे हैं. बल्कि कई परिवारों ने महीनों का राशन जमा किया हुआ है. हमें भी नहीं पता कि क्या कहीं पर हिंसा हुई है या नहीं. ऐसा लगता है कि यह गतिरोध लंबा चलेगा और हिंसा की आशंकाओं को ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता.”