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BBC News, हिंदीसामग्री को स्किप करेंसेक्शनहोम पेजकोरोनावायरसभारतविदेशमनोरंजनखेलविज्ञान-टेक्नॉलॉजीसोशलवीडियोहोम पेजकोरोनावायरसभारतविदेशमनोरंजनखेलविज्ञान-टेक्नॉलॉजीसोशलवीडियोकिसान आंदोलन: दिल्ली के विज्ञान भवन में सरकार को किसानों की 'दो टूक'वात्सल्य रायबीबीसी संवाददाता56 मिनट पहलेइमेज स्रोत, ANI“देखो ऐसा है, मीटिंग अमित शाह जी ने फिक्स कराई थी.” “उनके फ़ोन पर फिक्स हुई थी.”“लेकिन ऐसा नहीं था कि वो मीटिंग में बैठेंगे.”किसान आंदोलन के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच विज्ञान भवन में मंगलवार को हुई बातचीत के बाद बाहर आए ऑल इंडिया किसान फेडरेशन के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू ने बिना लाग लपेट के ये जानकारी दी. ये मीटिंग बेनतीजा ख़त्म हुई और अब सरकार और किसानों के प्रतिनिधि गुरुवार को 12 बजे फिर मिलेंगे. मीटिंग से कोई तोड़ नहीं निकला है, ये ख़बर शाम साढ़े छह बजे के बाद आधिकारिक तौर पर दी गई लेकिन विज्ञान भवन से छन-छन कर आती ख़बरों ने इसका इशारा शाम पांच बजे के करीब ही दे दिया था. छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ेंऔर ये भी पढ़ेंबाबरी मस्जिद विध्वंस के गवाह पत्रकारों ने क्या-क्या देखा था?किसान आंदोलन: समय से पहले बातचीत के लिए क्यों तैयार हुई मोदी सरकार#FarmersProtest पर बोले अमित शाह, किसानों का प्रदर्शन राजनीतिक नहीं#FarmersProtest: सिंघु बॉर्डर से हिलने को राज़ी नहीं है किसान, पहले बातचीत की माँगसमाप्तकिसान प्रतिनिधियों के समर्थकों का दावा था कि सरकार की ओर से 'मीटिंग में ऐसा कोई नाम शामिल नहीं है, जो कोई ठोस फैसला ले सके.' इस मीटिंग में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल मौजूद थे. इमेज स्रोत, ANI'मुद्दे की बात नहीं हुई'नतीजा भले ही न आया हो लेकिन विज्ञान भवन में मंगलवार को हुई मीटिंग को लेकर बड़ी उत्सुकता थी. कम से कम दिल्ली के बॉर्डर पर जमे किसानों को और उन्हें समर्थन दे रहे संगठनों को. विज्ञान भवन पर शाम साढ़े तीन बजे के बाद शुरू हुई मीटिंग को कवर करने के लिए मीडिया का बड़ा जमघट था. विज्ञान भवन के बाहर किसान संगठनों के गिने चुने प्रतिनिधि थे. पत्रकारों की संख्या उनके मुक़ाबले दस गुना थी. पत्रकार दिल्ली के भी थे और बड़ी संख्या में पंजाब और दूसरे राज्यों से आए पत्रकार भी मौजूद थे. विज्ञान भवन के बाहर खड़े किसान प्रतिनिधियों में से एक थे राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के संदीप गिड्डे. वो और उनके साथी शंकर दरेकर महाराष्ट्र से आए थे. वो अंदर चल रही बातचीत का ब्योरा मीटिंग में मौजूद साथियों से ले रहे थे और पत्रकारों के साथ साझा कर रहे थे. गिड्डे ने शाम पांच बजे करीब बताया, “मीटिंग को एक घंटा हो गया है और अभी कुछ मुद्दे की बात नहीं हुई. किसानों को पावर प्रजेंटेशन दिखाया जा रहा है. लगता नहीं कि कुछ निकलेगा.” गिड्डे के मुताबिक मीटिंग में मौजूद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल किसानों को ये समझाने की कोशिश में हैं कि इस सरकार ने किसानों के लिए कितने अच्छे काम किए हैं. मीटिंग ख़त्म होने के बाद ऑल इंडिया किसान फेडरेशन के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू ने भी इस दावे की पुष्टि करते हुए कहा, “उन्होंने सरकार के कामकाज दिखाने के लिए तैयारी की हुई थी. तो हमने कहा, हमने देखा हुआ है, जो आपकी सरकार है, उसने 2014 के बाद एग्रीकल्चर के लिए कुछ अच्छा नहीं किया, हम नहीं मानते कि किसान की हालत अच्छी है.”किसान आंदोलन के लिए कहाँ से आ रहा है फंड?कार्टून: किसान इधर, नेता किधर?किसान आंदोलन: समय से पहले बातचीत के लिए क्यों तैयार हुई मोदी सरकारइमेज स्रोत, ANIभावनात्मक अपील का असर नहींमीटिंग में शामिल रहे प्रतिनिधियों के मुताबिक पहले दौर में कृषि मंत्री और रेल मंत्री ने किसानों को समझाने की कोशिश की कि ये क़ानून खेती और किसानों के हित में है. लेकिन, भारतीय किसान यूनियन की एक यूनिट के अध्यक्ष भोग सिंह मानसा ने बताया कि किसान प्रतिनिधियों ने इस दलील को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया. मानसा ने बताया, “(कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह) तोमर जी ने कहा कि हम छोटी कमेटी (पांच प्रतिनिधियों की कमेटी) बनाकर बातचीत करना चाहते हैं.लेकिन किसान इसके लिए तैयार नहीं हुए.”मानसा के मुताबिक मंत्री ने इशारा किया कि क़ानूनों में संशोधन हो सकता है लेकिन 'हमने उस पर सहमति नहीं दी.' बातचीत भले ही बेनतीजा रही हो लेकिन किसान नाउम्मीद नहीं लौटे. प्रेम सिंह भंगू के मुताबिक मीटिंग में माहौल अच्छा था और कृषि मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि अगर गुरुवार को भी हल नहीं निकला तो बातचीत लगातार जारी रहेगी. किसान आंदोलन में पंजाब के 5 प्रमुख किसान नेता'मन की बात' में कृषि क़ानूनों और किसानों पर पीएम मोदी ने क्या कहाकिसान आंदोलन: MSP पर माँग मान क्यों नहीं लेती मोदी सरकार?इमेज स्रोत, REUTERS/DANISH SIDDIQUIभावनात्मक अपीलभोग सिंह मानसा के मुताबिक कृषि मंत्री ने कहा, “पीएम साहब चाहते हैं, सरकार चाहती है किसानों के हित में बात की जाए. किसानों के भले की बात की जाए.”लेकिन, किसान ऐसी भावनात्मक अपील के लिए भी तैयार होकर मीटिंग में आए थे. मानसा के मुताबिक कृषि मंत्री के बयान के जवाब में उन्होंने कहा, “अगर भले की बात है तो समझ लीजिए ये कानून किसानों के भले के लिए नहीं है. जब हमने इन क़ानूनों की मांग ही नहीं की तो आप धक्के से ये क़ानून हम पर क्यों थोप रहे हैं. हम मांग रहे हैं कि ये क़ानून रद्द किए जाएं.” मामला यहीं अटका रहा. सरकार की नज़र में किसानों के लिए जो भले की बात है, किसान उसे अपने नुक़सान की तरह देख रहे हैं. तो अब क्या गुरुवार को बात आगे बढ़ेगी. किसान प्रतिनिधियों का दावा है कि उन्हें कोई जल्दी नहीं है, वो दिल्ली में जमे रहने की तैयारी करके आए हैं और मांग पूरी होने तक आंदोलन वापस नहीं लेंगे लेकिन क्या सरकार मामले को इतना लंबा खींचना चाहेगी?(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और 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